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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - चतुर्थ प्रश्नपत्र - अनुसंधान पद्धति

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2696
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - चतुर्थ प्रश्नपत्र - अनुसंधान पद्धति

प्रश्न- परिकल्पना या उपकल्पना से आप क्या समझते हैं? परिकल्पना कितने प्रकार की होती है।

अथवा
परिकल्पना से आप क्या समझते हैं?
अथवा
परिकल्पना का अर्थ बताइए।
अथवा
परिकल्पना की परिभाषा को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
परिकल्पना के प्रकारों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
रूप परिकल्पना एवं घोषित परिकल्पना को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
दिशायुक्त एवं दिशाविहीन परिकल्पना को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
सामान्य परिकल्पना किसे कहते हैं?.

उत्तर -

परिकल्पना का अर्थ
(Meaning of Hypothesis)

परिकल्पना शब्द का अर्थ एक उपकथन से होता है जो समस्या की समाधान की अवधारणा होती है और शोधकर्त्ता उसकी पुष्टि करने का प्रयास करता है। परिकल्पना के कथन का स्वरूप एक व्याख्या के रूप में होता है जो अवलोकन या सिद्धान्तों पर आधारित होता है, जब किसी सम्भावित सिद्धान्त की प्रदत्तों तथा प्रमाणों के आधार पर पुष्टि की जाती है तब उसे परिकल्पना की संज्ञा दी जाती है। शोध की समस्त क्रियायें परिकल्पना पर केन्द्रित होती हैं। परिकल्पना शोध-कर्त्ता को उत्तेजना प्रदान करती है। परिकल्पना की पुष्टि से शोध के निष्कर्ष निकाले जाते हैं परिकल्पना को अंग्रेजी में (Hypothesis) कहते हैं जो दो शब्दों से मिलकर बना है

हाइपो (Hypo ) + थीसिस (Theis) = (Hypothesis) हाइपोथीसिस

हाइपो (Hypo) का अर्थ होता है सम्भावित या जिसकी पुष्टि की जाये, थीसिस का अर्थ होता है समस्या के समाधान का कथन। हाइपोथोसिस का शाब्दिक अर्थ है उस सम्भावित कथन से है जो समस्या का समाधान प्रस्तुत करता है। परिकल्पना ऐसे समाधान को प्रस्तुत करती है जिसकी पुष्टि प्रदत्तों के आधार पर की जा सके।

शब्द हाइपोथीसिस का अन्य अर्थ यह है- हाइपो का अर्थ है दो या दो से अधिक चरों का सम्मिश्रण, थीसिस का अर्थ उन चरों की स्थिति को प्रदर्शित करना। यह परिकल्पना का व्यावहारिक अर्थ है। परिकल्पना में कुछ चरों का सम्मिश्रण करने उनकी स्थिति का प्रदर्शित किया जाता है। इस सम्मिश्रण तथा स्थिति की पुष्टि प्रदत्तों या प्रामाणों के आधार पर करना सम्भव होता है। प्रत्यात्मक तत्वों के सम्बन्ध में एक अवधारणा मात्र होती है। यह समस्या का समाधान बड़ी सूझ-बूझ के साथ प्रतिपादित किया जाता है।

 

 

परिकल्पना को सम्भावित समाधान या सिद्धान्त भी कहा जाता है। इस कथन को अस्थायी रूप से सही मानकर इसकी पुष्टि का प्रयास किया जाता है। किसी शोध प्रक्रिया के नियोजन के लिये दिशा तथा आधार प्रदान करता है।

परिकल्पना की परिभाषा
(Definition of Hypothesis)

परिकल्पना की अनेक परिभाषायें दी गयी हैं। उनमें से कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाओं को यहाँ दिया गया है, वे इस प्रकार हैं-

जेम्स ई. ग्रीटन के अनुसार “परिकल्पना सम्भावित माना हुआ समस्या का हल होता है जिसकी व्याख्या उस परिस्थिति से निरीक्षण के आधार पर की जा सकती है।"       

"Hypothesis is a tentative supposition or provisional guess which seems and explains the situation under observation."         - J.E. Greeton.

  लगंवर्ग के अनुसार - "परिकल्पना का सम्भावित समाजीकरण होता है जिसकी वैधता की जाँच की जाती है। इसकी प्राथमिक अवस्था एक काल्पनिक समाधान के रूप में होता है। जो बाद में शोध कार्यों का आधार हो जाता है। "

"A Hypothesis is a tentative generalization, the validity of which remains to be tested. It is most elementary stage the hypothesis may be any hunch, guess, imagination idea which becomes the basis further investigation."            - John W. Best

जॉन डब्लू बेस्ट के अनुसार - "परिकल्पना एक विचार युक्त कथन है जिसका प्रतिपादन किया जाता है और अस्थायी रूप से सही मान लिया जाता है और निरीक्षण व प्रदत्तों के आधार पर,तथ्यों पर तथा परिस्थितियों के आधार पर व्याख्या की जाती है जो आगे शोध कार्यों को निर्देशन देता है।"

"It is a shrewed guess or inference that is formulated and provisionally adopted to explain observed facts or conditions and to guide in further investigation.”

आर. डी. क्रेमीकियल के अनुसार - "वैज्ञानिक चिन्तन प्रक्रिया के निर्देशन के लिये परिकल्पनाओं का प्रयोग करता है। जब अपने अनुभवों से यह विदित होता है कि एक तथ्य अन्य तथ्यों के साथ निरन्तर दिखलाई देता है तब हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि वे परस्पर सम्बन्धित हैं और हम इस सम्बन्ध के बारे में एक परिकल्पना का प्रतिपादन करते हैं। "

"Scientists employ hypothesis in guiding the thinking process. When our experience tells us that a given phenomenon follows regularly upon the appearance of certain other phenomenon follows regularly upon the appearance of certain other phenomena, we conclude that the former is connected with the latter by some sort of relationship and we form a hypothesis concerning this relationship.”.

गुड तथा हैट के अनुसार - "एक परिकल्पना वह बात कहती है जिसे हम आगे सोचते हैं। परिकल्पना सदैव आगे को देखती है। यह एक साध्य होती है जिसकी वैधता हेतु परीक्षण किया जाता है। यह सत्य सिद्ध हो सकती है और नहीं भी हो सकता है।"

 

"A Hypothesis states what we are looking forward. A hypothesis looks forward. It is a proposition which can be put to a test to determine its validity. It is a proposition which can be put to a test to determine its validity. It may prove to be correct or incorect."        - Good & Hatt

बुस डब्लू. टकसन के अनुसार - "परिकल्पना की परिभाषा अपेक्षित घटना के रूप में की जा सकती है जो चरों के माने हुए सम्बन्ध का सामान्यीकरण होता है। "

"A Hypothesis then could be defined as an expectation about events based on generalization of the assumed relationship between variables."

परिकल्पना दो या दो से अधिक चरों के सम्बन्ध का सम्भावित कथन होता है। यह हमेशा घोषणात्मक कथन के रूप में प्रतिपादित किया जाता है जो चरों के सामान्या या विशिष्टता को प्रकट करता है।

एम. वर्मा के अनुसार - “परिकल्पना किसी सिद्धान्त का वह रूप है जिसे एक परीक्षण योग्य तर्क साध्य के रूप में लिखते हैं और जिसकी स्पष्ट रूप से प्रदत्तों के आधार पर या प्रयोगात्मक निरीक्षणों के आधार पर पुष्टि की जा सकती है।"

"A Theory when stated as a testable proposition formally and clearly and subjected to empirical or experimental varification is known as a hypothesis."            - M. Varma

गुड बार तथा स्केट के अनुसार - “परिकल्पना एक ऐसा कथन होता है जिसे अस्थायी रूप से सही मान लेते हैं जोकि परिचित तथ्यों से सम्बन्धित होता है। जिसका उपयोग शोध की क्रियाओं को निर्धारित करने के लिए किया जाता है। इसकी सहायता से नये सत्यों की खोज की जाती है। परिकल्पना की पुष्टि हो जाती है तब उससे नए तथ्यों, नियमों और सिद्धान्त का प्रतिपादन किया जाता है। "

जार्ज जे. मुले के अनुसार - “परिकल्पना एक अवधारणा या साध्य होती है जिसकी पुष्टि प्रदत्तों या प्रायोगात्मक निरीक्षणों के आधार पर की जाती है तथा पूर्व ज्ञान के आधार पर उसका औचित्य प्रगट किया जाता है। "

परिकल्पना की एक कथन के रूप में परिभाषा की जा सकती है जो दो या दो से अधिक चरों का सम्भावित सह-सम्बन्ध प्रगट करता है। यह सह- सम्बन्ध सामान्य तथा व्यावहारिक (Causal) दोनों प्रकार का हो सकता है। इसकी पुष्टि भी की जाती है।

परिकल्पनाओं के प्रकार
(Types of Hypothesis)

परिकल्पनायें रूप तथा सन्दर्भ के आधार पर कई तरह की होती हैं। परिकल्पना का रूप उसके कार्य के अनुसार पर निर्धारित किया जाता है। व्यावहारिक परिकल्पना एक ऐसे सम्भावित हल को प्रकट करती है जिसकी स्पष्टता के लिए प्रमाण या प्रदत्त उपलब्ध होते हैं। इसके अतिरिक्त सांख्यिकीय विश्लेषण अन्य प्रकार की परिकल्पना की जरूरत होती है।

साधारणत: परिकल्पनायें चार प्रकार की होती हैं-

(अ) प्रश्न के रूप में (Question Form),
(ब) घोषित कथन (Declarative),
(स) दिशायुक्त कथन ( Direction Statement) तथा (N) दिशाविहीन (Non-directional)

इन परिकल्पनाओं का वर्णन यहाँ किया गया है -

(अ) प्रश्न रूप परिकल्पना ( Questions Form ) - कुछ विद्वानों की यह विचारधारा है कि परिकल्पनाओं को प्रश्न के रूप में लिखना चाहिए, परन्तु इस सम्बन्ध में जनसाधारण की सहमति नहीं है। एक उत्तम परिकल्पना सरलतापूर्वक प्रदत्त संकलन को प्रदर्शित करना चाहिए। वास्तव में परिकल्पना की अधिकांश परिभाषा में इस तथ्य को महत्व नहीं दिया जाता है। प्रश्न रूप परिकल्पना में विशिष्टीकरण होता है और नहीं भी होता है। इस प्रकार की परिकल्पनाओं का प्रयोग आसान शोध कार्यों में प्रयोग किया जाता है। इनका रूप इस प्रकार का होता है कि इन्हें निरस्त भी किया जा सकता है तथा मंजूरी भी दी जा सकती है। इसका उदाहरण अधोलिखित है-

परिकल्पना - क्या पुनर्बलन के प्रारूप और बर्हिमुखी व्यक्तित्व का अधिगम उपलब्धि पर सार्थक प्रभाव होता है।

(ब) घोषित परिकल्पना (Declarative Hypothesis) - घोषित परिकल्पना में चरों के सह-सम्बन्ध की घोषणा की जाती है। पहले अपेक्षित सह-सम्बन्ध तथा चरों के अन्तर को परिकल्पना घोषित कथन के रूप में विकसित की जाती है, पहले अपेक्षित अन्तर का विश्वास उपलब्ध प्रमाणों तथा अनुभवों के आधार पर किया जाता है। इसका उदाहरण अधोलिखित है -

परिकल्पना - पुनर्बलन के प्रारूप और बहुर्मुखी व्यक्तित्व का अधिगम उपलब्धि पर सार्थक प्रभाव होता है।

इस परिकल्पना में स्वतन्त्र तथा आश्रित चरों की भूमिका के सम्बन्ध में घोषणा की गई है। चर पर सार्थक प्रभाव को प्रकट किया है। प्रदत्तों के आधार पर इसकी पुष्टि होती है तथा शोध का प्रारूप विकसित किया जाता है।

दिशायुक्त एवं दिशाविहीन परिकल्पना

दिशायुक्त परिकल्पना (Directional Hypothesis) - जब किसी सम्भावित समाधान को अपेक्षित दिशा में लिखा जाता है तब उसे दिशायुक्त परिकल्पना कहा जाता है। इसमें चरों के सह-सम्बन्ध को अपेक्षित रूप में प्रकट किया जाता है। इसी प्रकार चरों के अन्तर को विशिष्ट रूप में लिखते हैं। इस प्रकार की परिकल्पना का विकसित करना मुश्किल समझा जाता है क्योंकि अपेक्षित दिशा को प्रकट करने का पर्याप्त सैद्धान्तिक आधार होना जरूरी होता है। इसके सम्बन्धित साहित्य की समीक्षा की सहायता ली जाती है। दिशायुक्त परिकल्पना को बिना सैद्धान्तिक आधार अथवा औचित्य के वैध नहीं माना जाता है। इस प्रकार की परिकल्पना का उदाहरण अधोलिखित है-

परिकल्पना - "अन्तर्मुखी व्यक्तित्व के छात्र पुनर्बलन के लगातार प्रक्रिया से ज्यादा सीखते हैं और बहिर्मुखी व्यक्तित्व के छात्र पुनर्बलन के अन्तरिम प्रक्रिया के उत्तम प्रकार से सीखते हैं।"

इस प्रकार की परिकल्पना का रूप मुश्किल है। क्योंकि शोधकर्त्ता को कुछ परिस्थितियाँ पैदा करनी होती हैं। कुछ शोधकर्ता इस प्रकार की परिकल्पना को दोषपूर्ण बतलाते हैं कि वह शोध कार्य में वस्तुनिष्ठ नहीं कर पाता है, जो दिशा प्रकट की है। उसकी किसी-न-किसी प्रकार की पुष्टि करना चाहता है। इसीलिए आज दिशाविहीन परिकल्पना का प्रतिपादन ज्यादा किया जाता है।

दिशाविहीन परिकल्पना हैं (Non-Directional) - इन्हें भ्रम वश शून्य परिकल्पना (Null- Hypothesis) भी कहते हैं। इसका प्रयोग केवल सांख्यिकी की सार्थकता के परीक्षण के लिए किया जाता है। इस प्रकार की परिकल्पना को नकारात्मक रूप में विकसित किया जाता है। चरों के सह-सम्बन्ध को नकारात्मक कथन लिखा जाता है। इसी प्रकार चरों के अन्तर को भी नकारात्मक रूप में प्रकट करते हैं। इस प्रकार की परिकल्पना की विशेषता यह है कि इनके लिए कोई सैद्धांतिक आधार या औचित्य प्रस्तुत नहीं करना होता है। शोधकर्त्ता को वस्तुनिष्ठ भी रखती है, इनको विकसित करना अपेक्षाकृत सरल होता है। सम्बन्धित साहित्य समीक्षा की भी जरूरत नहीं होती है। इसका उदाहरण इस प्रकार है -

परिकल्पना - " बहिर्मुखी व्यक्तित्व तथा पुनर्बलन के प्रक्रिया का अधिगम उपलब्धि पर सार्थक प्रभाव नहीं होता है।"
परिकल्पना - "बुद्धि तथा निष्पत्ति में सह-सम्बन्ध नहीं होता है। "

सामान्य रूप से परिकल्पनाओं को दो रूपों में बँटवारा कर सकते हैं: सामान्य परिकल्पना तथा शून्य परिकल्पना।

 

सामान्य परिकल्पना
(General Hypothesis)

शोध प्रक्रिया का द्वितीय सोपान होता है और शून्य परिकल्पना का पंचम सोपान होता है। प्रदत्तों के विश्लेषण तथा सार्थकता का परीक्षण करने में शून्य परिकल्पना की मदद ली जाती है। सामान्य परिकल्पना के आधार पर शोध के प्रारूप को विकसित किया जाता है। दोनों परिकल्पना एक-दूसरे की पूरक होती हैं। शून्य-परिकल्पना की पुष्टि में सामान्य परिकल्पना के सम्बन्ध में निर्णय लेने में मदद मिलती है। अधोलिखित उदाहरण से इन्हें स्पष्ट किया जाता है -

सामान्य परिकल्पना - "अभिक्रमित अनुदेशन, परम्परागत शिक्षण विधि की अपेक्षा ज्यादा प्रभावशाली होता है। "

सामान्य परिकल्पना - भाषा शिक्षण में संरचना विधि, प्रवचन विधि से ज्यादा प्रभावशली होती है। इन परिकल्पनाओं की पुष्टि हेतु शोध प्रारूप विकसित किया जाता है और इनकी पुष्टि हेतु प्रदत्तों का संकलन किया जाता है और उनका विश्लेषण किया जाता है। जैसे

सांख्यिकी अभिक्रमित अनुदेशन व्याख्यान विधि
मध्यमान M1 M1
प्रामाणिक विचलन S1 S2
  न्यायदर्श N1 N2

इनकी सार्थकता के परीक्षण हेतु शून्य-परिकल्पना की मदद ली जाती है। इन विधियों में अन्तर नहीं है अथवा अन्तर शून्य है।

दोनों माध्यमानों में अन्तर नहीं है। जो अन्तर प्राप्त हुआ है न्यायदर्श की गलती के कारण है। इस कथन को शून्य - परिकल्पना कहते हैं। इसकी पुष्टि हेतु परीक्षण किया जाता है। यदि परीक्षण में अन्तर- सार्थकता स्पष्ट हो जाती है और अभिक्रमित अनुदेशन का मध्यमान प्रवचन विधि के मध्यमान से ज्यादा हो तो यह अर्थापन किया जा सकेगा कि अभिक्रमित अनुदेशन प्रवचन विधि से ज्यादा प्रभावशाली है, इस प्रकार जो सामान्य परिकल्पना है। उसकी पुष्टि होती है। शून्य परिकल्पना के परीक्षण से सामान्य परिकल्पना के सम्बन्ध में निर्णय लेने में मदद मिलती है शून्य- परिकल्पना को सांख्यिकी परिकल्पना की संज्ञा दी जाती है, (Ho) तब इसे प्रयुक्त किया जाता है।

सामान्य परिकल्पना तथा शून्य- परिकल्पना के पारस्परिक सम्बन्ध को अधोलिखित तालिका से स्पष्ट किया जा सकता है.-

2696_05_98

जब विकल्प परिकल्पना (H1) की पुष्टि हो जाती है, और उसे सही सिद्ध कर लिया जाता है और शून्य परिकल्पना (H0) को निरस्त कर दिया जाता है जब प्रथम प्रकार (Type I) की गलती मानी जाती है। न्यायदर्श के कारण अन्तर नहीं होता है।

जब शून्य परिकल्पना (H2) की पुष्टि हो जाती है और विकल्प परिकल्पना को (H1) निरस्त कर दिया जाता है तब उसे द्वितीय प्रकार (Type II) की गलती मानी जाती है। अन्तर न्यायदर्श के कारण होता है।

प्राप्त अन्तर
(Obtained Difference)

 

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- अनुसंधान की अवधारणा एवं चरणों का वर्णन कीजिये।
  2. प्रश्न- अनुसंधान के उद्देश्यों का वर्णन कीजिये तथा तथ्य व सिद्धान्त के सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए।
  3. प्रश्न- शोध की प्रकृति पर प्रकाश डालिए।
  4. प्रश्न- शोध के अध्ययन-क्षेत्र का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- 'वैज्ञानिक पद्धति' क्या है? वैज्ञानिक पद्धति की विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  6. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरणों का वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- अन्वेषणात्मक शोध अभिकल्प की व्याख्या करें।
  8. प्रश्न- अनुसन्धान कार्य की प्रस्तावित रूपरेखा से आप क्या समझती है? इसके विभिन्न सोपानों का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- शोध से क्या आशय है?
  10. प्रश्न- शोध की विशेषतायें बताइये।
  11. प्रश्न- शोध के प्रमुख चरण बताइये।
  12. प्रश्न- शोध की मुख्य उपयोगितायें बताइये।
  13. प्रश्न- शोध के प्रेरक कारक कौन-से है?
  14. प्रश्न- शोध के लाभ बताइये।
  15. प्रश्न- अनुसंधान के सिद्धान्त का महत्व क्या है?
  16. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के आवश्यक तत्त्व क्या है?
  17. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति का अर्थ लिखो।
  18. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरण बताओ।
  19. प्रश्न- गृह विज्ञान से सम्बन्धित कोई दो ज्वलंत शोध विषय बताइये।
  20. प्रश्न- शोध को परिभाषित कीजिए तथा वैज्ञानिक शोध की कोई चार विशेषताएँ बताइये।
  21. प्रश्न- गृह विज्ञान विषय से सम्बन्धित दो शोध विषय के कथन बनाइये।
  22. प्रश्न- एक अच्छे शोधकर्ता के अपेक्षित गुण बताइए।
  23. प्रश्न- शोध अभिकल्प का महत्व बताइये।
  24. प्रश्न- अनुसंधान अभिकल्प की विषय-वस्तु लिखिए।
  25. प्रश्न- अनुसंधान प्ररचना के चरण लिखो।
  26. प्रश्न- अनुसंधान प्ररचना के उद्देश्य क्या हैं?
  27. प्रश्न- प्रतिपादनात्मक अथवा अन्वेषणात्मक अनुसंधान प्ररचना से आप क्या समझते हो?
  28. प्रश्न- 'ऐतिहासिक उपागम' से आप क्या समझते हैं? इस उपागम (पद्धति) का प्रयोग कैसे तथा किन-किन चरणों के अन्तर्गत किया जाता है? इसके अन्तर्गत प्रयोग किए जाने वाले प्रमुख स्रोत भी बताइए।
  29. प्रश्न- वर्णात्मक शोध अभिकल्प की व्याख्या करें।
  30. प्रश्न- प्रयोगात्मक शोध अभिकल्प क्या है? इसके विविध प्रकार क्या हैं?
  31. प्रश्न- प्रयोगात्मक शोध का अर्थ, विशेषताएँ, गुण तथा सीमाएँ बताइए।
  32. प्रश्न- पद्धतिपरक अनुसंधान की परिभाषा दीजिए और इसके क्षेत्र को समझाइए।
  33. प्रश्न- क्षेत्र अनुसंधान से आप क्या समझते है। इसकी विशेषताओं को समझाइए।
  34. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ व प्रकार बताइए। इसके गुण व दोषों की विवेचना कीजिए।
  35. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख प्रकार एवं विशेषताएँ बताइये।
  36. प्रश्न- सामाजिक अनुसन्धान की गुणात्मक पद्धति का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन के गुण लिखो।
  38. प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन के दोष बताओ।
  39. प्रश्न- क्रियात्मक अनुसंधान के दोष बताओ।
  40. प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन और सर्वेक्षण अनुसंधान में अंतर बताओ।
  41. प्रश्न- पूर्व सर्वेक्षण क्या है?
  42. प्रश्न- परिमाणात्मक तथा गुणात्मक सर्वेक्षण का अर्थ लिखो।
  43. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ बताकर इसकी कोई चार विशेषताएँ बताइए।
  44. प्रश्न- सर्वेक्षण शोध की उपयोगिता बताइये।
  45. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के विभिन्न दोषों को स्पष्ट कीजिए।
  46. प्रश्न- सामाजिक अनुसंधान में वैज्ञानिक पद्धति कीक्या उपयोगिता है? सामाजिक अनुसंधान में वैज्ञानिक पद्धति की क्या उपयोगिता है?
  47. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के विभिन्न गुण बताइए।
  48. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण तथा सामाजिक अनुसंधान में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की क्या सीमाएँ हैं?
  50. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की सामान्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की क्या उपयोगिता है?
  52. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की विषय-सामग्री बताइये।
  53. प्रश्न- सामाजिक अनुसंधान में तथ्यों के संकलन का महत्व समझाइये।
  54. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के प्रमुख चरणों की विवेचना कीजिए।
  55. प्रश्न- अनुसंधान समस्या से क्या तात्पर्य है? अनुसंधान समस्या के विभिन्न स्रोतक्या है?
  56. प्रश्न- शोध समस्या के चयन एवं प्रतिपादन में प्रमुख विचारणीय बातों का वर्णन कीजिये।
  57. प्रश्न- समस्या का परिभाषीकरण कीजिए तथा समस्या के तत्वों का विश्लेषण कीजिए।
  58. प्रश्न- समस्या का सीमांकन तथा मूल्यांकन कीजिए तथा समस्या के प्रकार बताइए।
  59. प्रश्न- समस्या के चुनाव का सिद्धान्त लिखिए। एक समस्या कथन लिखिए।
  60. प्रश्न- शोध समस्या की जाँच आप कैसे करेंगे?
  61. प्रश्न- अनुसंधान समस्या के प्रकार बताओ।
  62. प्रश्न- शोध समस्या किसे कहते हैं? शोध समस्या के कोई चार स्त्रोत बताइये।
  63. प्रश्न- उत्तम शोध समस्या की विशेषताएँ बताइये।
  64. प्रश्न- शोध समस्या और शोध प्रकरण में अंतर बताइए।
  65. प्रश्न- शैक्षिक शोध में प्रदत्तों के वर्गीकरण की उपयोगिता क्या है?
  66. प्रश्न- समस्या का अर्थ तथा समस्या के स्रोत बताइए?
  67. प्रश्न- शोधार्थियों को शोध करते समय किन कठिनाइयों का सामना पड़ता है? उनका निवारण कैसे किया जा सकता है?
  68. प्रश्न- समस्या की विशेषताएँ बताइए तथा समस्या के चुनाव के अधिनियम बताइए।
  69. प्रश्न- परिकल्पना की अवधारणा स्पष्ट कीजिये तथा एक अच्छी परिकल्पना की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  70. प्रश्न- एक उत्तम शोध परिकल्पना की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- उप-कल्पना के परीक्षण में होने वाली त्रुटियों के बारे में उदाहरण सहित बताइए तथा इस त्रुटि से कैसे बचाव किया जा सकता है?
  72. प्रश्न- परिकल्पना या उपकल्पना से आप क्या समझते हैं? परिकल्पना कितने प्रकार की होती है।
  73. प्रश्न- उपकल्पना के स्रोत, उपयोगिता तथा कठिनाइयाँ बताइए।
  74. प्रश्न- उत्तम परिकल्पना की विशेषताएँ लिखिए।
  75. प्रश्न- परिकल्पना से आप क्या समझते हैं? किसी शोध समस्या को चुनिये तथा उसके लिये पाँच परिकल्पनाएँ लिखिए।
  76. प्रश्न- उपकल्पना की परिभाषाएँ लिखो।
  77. प्रश्न- उपकल्पना के निर्माण की कठिनाइयाँ लिखो।
  78. प्रश्न- शून्य परिकल्पना से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
  79. प्रश्न- उपकल्पनाएँ कितनी प्रकार की होती हैं?
  80. प्रश्न- शैक्षिक शोध में न्यादर्श चयन का महत्त्व बताइये।
  81. प्रश्न- शोधकर्त्ता को परिकल्पना का निर्माण क्यों करना चाहिए।
  82. प्रश्न- शोध के उद्देश्य व परिकल्पना में क्या सम्बन्ध है?
  83. प्रश्न- महत्वशीलता स्तर या सार्थकता स्तर (Levels of Significance) को परिभाषित करते हुए इसका अर्थ बताइए?
  84. प्रश्न- शून्य परिकल्पना में विश्वास स्तर की भूमिका को समझाइए।

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